जब भगवान श्रीराम ने अपने प्राण से प्रिय भाई लक्ष्मण को दिया मृत्युदंड/When Lord Shriram executed his beloved brother Lakshman with his life.
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प्रभु श्रीराम जन जन के मानस में आस्था के केन्द्र हैं। पिछले साल 5 अगस्त को रामजन्मभूमि अयोध्या में उनके भव्य मंदिर के लिए भूमि पूजन हुआ था। भगवान श्रीराम का चरित्र और उनके आदर्श का पता हमें वाल्मीकि रामायण जैसे ग्रंथों से मिलता है। हम देखते हैं कि संपूर्ण रामायण का सार मर्यादा में रहकर वचन और कर्तव्यों का पालन करना है। इसके मुख्य किरदार भी भगवान श्रीराम थे। कहते हैं कि भगवान श्री राम ने अपने वचन का पालन करने के लिए अपने प्राण से प्रिय भाई लक्ष्मण को मृत्युदंड का आदेश दे दिया था। कथा का इसका प्रसंग उत्तर रामायण में भी मिलता है।
क्या हुआ एकबार स्वयं काल के देव यमराज मुनि का वेश धारण कर भगवान श्रीराम के दरबार पहुंचे। तब उन्होंने भगवान श्रीराम से अकेले में वार्तालाप करने का निवेदन किया। तब उन्होंने कहा कि मैं आपसे एक वचन लेना चाहता हूं कि जब तक मेरे और आपके बीच वार्तालाप चले तो हमारे बीच कोई नहीं आएगा और जो भी आएगा, उसको आपको मृत्युदंड देना होगा। भगवान राम ने यमराज को वचन दे दिया
भगवान राम ने अपने अनुज भाई लक्ष्मण को यह कहते हुए द्वारपाल नियुक्त कर दिया कि जब तक उनकी और यमराज रूपी साधु से बात हो रही है वो किसी को भी अंदर न आने दें, अन्यथा उसे उन्हें मृत्युदंड देना पड़ेगा। लक्ष्मण भाई की आज्ञा मानकर द्वारपाल बनकर खड़े हो गए।उधर, इस बीच अयोध्या के राजमहल में ऋषि दर्वासा आ जाते हैं। वे श्रीराम से तत्काल भेंट करने के लिए लक्ष्मण से कहते हैं। लेकिन लक्ष्मण ऋषि से कहते हैं कि प्रभु राम अभी किसी से विशेष वार्तालाप कर रहे हैं। अत: वे अभी आपसे तत्काल नहीं मिल सकते। आप दो घड़ी के लिए विश्राम कर लीजिए फिर मैं आपकी सूचना उन तक पहुंचा दूंगा।
यह बात सुनकर ऋषि दुर्वासा क्रोधित हो गए और फिर उन्होंने संपूर्ण अयोध्या को भस्म करने को कहI फिर क्या था, लक्ष्मण ने अपनी अयोध्या नगरी को बचाने के लिए अपने प्राणों की परवाह नहीं की और यमराज और प्रभु श्रीराम के पास सूचना देने चले गए। उन्होंने प्रभु श्रीराम को ऋषि दुर्वासा के आगमन की सूचना दी।
भगवान राम ने शीघ्रता से यमराज के साथ अपनी वार्तालाप समाप्त कर ऋषि दुर्वासा की आव-भगत की। परन्तु अब तक श्री राम दुविधा में पड़ चुके थे क्योंकि उन्हें अपने वचन के अनुसार लक्ष्मण को मृत्यु दंड देना था। वो समझ नहीं पा रहे थे कि वे अपने भाई को मृत्युदंड कैसे दे, लेकिन उन्होंने यम को वचन दिया था जिसे निभाना ही था।
फिर इस दुविधा की स्थिति में श्री राम ने अपने गुरु जी का स्मरण किया और कोई रास्ता दिखाने को कहा। तब गुरु देव ने कहा कि अपने किसी प्रिय प्राणी का त्याग, उसकी मृत्यु के समान ही है। अतः तुम अपने वचन का पालन करने के लिए लक्ष्मण का त्याग कर दो। भगवान श्रीराम ने अपने वचन का पालन करते हुए अपने पुत्र समान छोटे भाई का त्याग कर दिया। श्रीराम के त्यागने के बाद लक्ष्मण ने जल समाधि लेकर अपनी जीवन लीला को समाप्त कर दिया।
साभार 🙏🙏🙏🙏🙏
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